Sunday 25 October 2015

रहम कर कुछ तो अब तू ज़िन्दगी

रहम कर कुछ तो ज़िन्दगी
जब वो नहीं है तो क्यू खामखा मुझको,
उसके खवाबों और यादों से सताती है,
तू तो चैन से सो जाती है, हमको फिर
कई दिनों तकनींद नहीं आतीहै
रहम कर,
रहम कर कुछ तो ज़िन्दगी
राह चलते चेहरों में तू उससे मुलाक़ात कराती है
तू रोज मुझसे ही मेरा क़त्ल कराती है
रहम कर कुछतो ज़िन्दगी
तेरी हरकतों सेही,
घंटों सुलगती रहती है, उसकी यादों की आग इस सीने में,
बुझने पर उड़ती राख, आँख किरकिरा कर जाती है
या तो अब रहम कर या दफ़न कर मुझको
अब तेरी और सरदर्दी सहन नहीं हो पाती है
चंद साँसें औरहैं चंद दिन औरहैं
उसकी यादों से बड़ी तकलीफ़ होती है
रहम कर कुछ तो अब तू ज़िन्दगी

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